कहीं नहीं वहीं



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Size | 24 MB (24,083 KB) |
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Format | |
Downloaded | 626 times |
Status | Available |
Last checked | 11 Hour ago! |
Author | Ashok Vajpeyi |
“Book Descriptions: अनुपस्थिति, अवसान और लोप से पहले भी अशोक वाजपेयी की कविता का सरोकार रहा है, पर इस संग्रह में उनकी अनुभूति अप्रत्याशित रूप से मार्मिक और तीव्र है । उन्हें चरितार्थ करनेवाली काव्यभाषा अपनी शांत अवसन्नता से विचलित करती है । निपट अंत और निरंतरता का द्वंद्व, होने–न–होने की गोधूलि, आसक्ति और निर्मोह का युग्म उनकी इधर लगातार बढ़ती समावेशिता को और भी विशद और अर्थगर्भी बनाता है । अशोक वाजपेयी उन कवियों में हैं जो कि निरे सामाजिक या निरे निजी सरोकारों से सीमित रहने के बजाय मनुष्य की स्थिति के बारे में, अवसान, रति, प्रेम, भाषा आदि के बारे में चरम प्रश्नों को कविता में पूछना और उनसे सजग ऐंद्रियता के साथ जूझना, मनुष्य की समानता से बेपरवाह हुए जाते युग में, अपना जरूरी काम मानते हैं । बिना दार्शनिकता का बोझ उठाए या आध्यात्मिकता का मुलम्मा चढ़ाए उनकी कविता विचारोत्तेजना देती है । अशोक वाजपेयी की गद्य कविताएँ, उनकी अपनी काव्यपरंपरा के अनुरूप ही, रोज़मर्रा और साधारण लगती स्थितियों का बखान करते हुए, अनायास ही अप्रत्याशित और बेचैन करनेवाली विचारोत्तेजक परिणतियों तक पहुँचती हैं । यह संग्रह बेचैनी और विकलता का एक दस्तावेज है % उसमें अनाहत जिजीविषा और जीवनरति ने चिंता और जिज्ञासा के साथ नया नाजुक संतुलन बनाया है । कविता के पीछे भरा–पूरा जीवन, अपनी पूरी ऐंद्रियता और प्रश्नाकुलता में, स्पन्दित है । एक बार फिर यह बात रेखांकित होती है कि हमारे कठिन और कविताविमुख समय में कविता संवेदनात्मक चैकन्नेपन, गहरी चिंतनमयता, उत्कट जीवनासक्ति और शब्द की शक्ति एवं अद्वितीयता में आस्था से ही संभव है । यह साथ देनेवाली पासपड़ोस की कविता है, जिसमें एक पल के लिए हमारा अपना संघर्ष, असंख्य जीवनच्छवियाँ और भाषा में हमारी असमाप्य संभावनाएँ विन्यस्त और पारदर्शी होती चलती हैं ।”