“Book Descriptions: अपने आप से, अपने परिवेश और व्यवस्था से नाराज कवि के रूप में दुष्यंत कुमार की कविताएँ हिंदी का एक आवश्यक हिस्सा बन चुकी हैं ! आठवें दशक के मध्य और उत्तरार्द्ध में अपनी धारदार रचनाओं के लिए बहुचर्चित दुष्यंत जिस आग में होम हुए, उसे उनकी रचनाओं में लम्बे समय तक महसूस किया जाता रहेगा ! आवाजों के घेरे दुष्यंत कुमार का एक जरूरी कविता-संग्रह है ! इसमें धुआं-धुआं होती उस शख्सियत को साफ़ तौर पर पहचाना जा सकता है, जिसे दुष्यंत कहा जाता है ! समग्रतः ये विरोध की कविताएँ हैं लेकिन रचनात्मक स्तर पर कवि का यह विरोध व्यवस्था से अधिक अपने आप से है, जहाँ व्यक्ति न होकर वह एक वर्ग है-मुट्ठियों को बांधता और खोलता ! बांधना, जो उसकी जरूरत है और खोलना, मजबूरी ! एक प्रकार की निरर्थकता और ठहराव का जो बोध इन कविताओं में है, वह सार्थक और गतिशील होने की गहरी छटपटाहत से भरा हुआ है ! स्पष्टतः कवि का यही द्वंद्व और छटपटाहत इन कविताओं का रचनाधाय है, जिसे सहज और सार्थक अभिव्यकि मिली है ! दुष्यंत लय के कवि हैं, इसलिए मुक्तछंद होकर भी ये कविताएँ छंदमुक्त नहीं हैं ! साथ ही यहाँ उनके कुछ गीत भी हैं और बाद में सामने आई बेहतरीन गजलों की आहटें भी ! संक्षेप में, यह संग्रह दुष्यंत की असमय समाप्त हो गई काव्य-यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव है !” DRIVE