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  • Divasvapna : An Educator's Reverie

    (By Gijubhai Badheka)

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    Author Gijubhai Badheka
    “Book Descriptions: इसी बीच प्रधानाध्यापक एकाएक आए और मुझे टोका; ‘‘देखिए; यहाँ पास में कोई खेल नहीं खेला जा सकता। चाहो; तो दूर उस मैदान में चले जाइए। यहाँ दूसरों को तकलीफ होती है।’’
    मैं लड़कों को लेकर मैदान में पहुँचा।
    लड़के तो बे-लगाम घोड़ों की तरह उछल-कूद मचा रहे थे। ‘‘खेल! खेल! हाँ; भैया खेल!’’
    मैंने कहा; ‘‘कौन सा खेल खेलोगे?’’
    एक बोला; ‘‘खो-खो।’’
    दूसरा बोला; ‘‘नहीं; कबड्डी।’’
    तीसरा कहने लगा; ‘‘नहीं; शेर और पिंजड़े का खेल।’’
    चौथा बोला; ‘‘तो हम नहीं खेलते।’’
    पाँचवाँ बोला; ‘‘रहने दो इसे; हम तो खेलेंगे।’’
    मैंने लड़कों की ये बिगड़ी आदतें देखीं।
    मैं बोला; ‘‘देखो भई; हम तो खेलने आए हैं। ‘नहीं’ और ‘हाँ ’ और ‘नहीं खेलते;’ और ‘खेलते हैं;’ करना हो तो चलो; वापस कक्षा में चलें।’’
    लड़के बोले; ‘‘नहीं जी; हम तो खेलना चाहते हैं।’’
    —इसी पुस्तक से
    बाल-मनोविज्ञान और शैक्षिक विचारों को कथा शैली में प्रस्तुत करनेवाले अप्रतिम लेखक गिजुभाई के अध्यापकीय जीवन के अनुभव का सार है यह—‘दिवास्वप्न’।”

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